शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

गरीबों व मजलूमों के पैरोकार थे - शिखरपुरुष स्व. श्री दुर्गा प्रसाद मिश्र (दुरुगा बाबा)

लोकप्रिय, कद्दावर व पूर्वांचली दिग्गज भाजपा नेता श्री दुर्गा प्रसाद मिश्र किसी परिचय के मोहताज नहीं। आज वे हमारे बीच नहीं हैं फिर भी अपने सुकार्यों से, जन कार्यों से वे अपनों के बीच, जनता-जनार्दन के बीच सदा-सदा के लिए अमर हैं। अगर देवरिया जिले की बात करें तो, देवरिया का बच्चा-बच्चा भी इस महान विभूति से पूरी तरह परिचित है। दुरुगा बाबा किसी विशेष पार्टी या विचारधारा के पोषक नहीं थे, अपितु वे तो जमीन से जुड़ें एक ऐसे नेता थे जो सिर्फ व सिर्फ गरीब, मजदूर, किसानों के हित की लड़ाई लड़ते थे और इसके लिए उनकी अपनी विचारधारा सर्वोपरि थी। वे देश, समाज व अपने जिले-जवार के विकास के लिए सदा प्रयासशील रहे। गरीबों व मजलूमों के इस पैरोकार ने कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया, भले ही इन्हें किसी पार्टी को राम-राम ही करना क्यों न पड़ा। स्वच्छ राजनीति के पक्षधर श्री मिश्र कभी भी किसी नेता, अधिकारी के आगे झुके नहीं। श्री मिश्र युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत थे। वे चाहते थे कि देश की राजनीति में युवाओं का भी पूरा सहयोग हो, क्योंकि उनका मानना था कि देश को, समाज को अगर विकास के पथ पर तेजी से दौड़ाना है तो युवाओं की भागीदारी अति आवश्यक है। वे शिक्षा के प्रबल समर्थक थे। वे चाहते थे कि सबको उचित शिक्षा सुलभ हो ताकि एक ऐसे समाज का निर्माण हो सके जो शिक्षित व नैतिक आधार पर पूरी तरह से मजबूत हो। श्री मिश्र आजीवन गरीब, किसान, समाज, पूर्वांचल, प्रदेश के विकास के लिए समर्पित रहे। खुले विचारों के धनी श्री मिश्र की संवाद शैली बहुत ही अद्भुत और बेजोड़ थी जो किसी को भी सहजता से प्रभावित कर जाती थी। जमीन से जुड़ा यह जननेता महान राष्ट्रभक्त भी था। जब भी राष्ट्र की बात आती थी तो बाकी बातें इनके लिए गौण हो जाती थीं।
इस महान जननेता का जन्म 29 अक्टूबर 1942 को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के बरहज तहसील में एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनकी माता का नाम श्रीमती गुंजेश्वरी देवी एवं पिता का नाम पंडित श्री कमला प्रसाद मिश्र था। माँ गुंजेश्वरी देवी एक धर्मपरायण व सहज स्नेही महिला थीं और धर्म-कर्म के साथ ही अपनी मृदु व्यवहार से सबको अपना बना लेती थीं। यह एक ऐसा परिवार था जिसके दरवाजे से कोई भी जरूरतमंद वापस नहीं जाता और उसकी जरूरतें सहर्ष पूरी करने का प्रयत्न किया जाता। पिता श्री कमला प्रसाद मिश्रजी सदा गाँव-जवार-जिले के लोगों की मदद करने के लिए तत्पर रहते। पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के बाद श्री दुर्गा प्रसाद मिश्रजी कोऑपरेटिव सलेमपुर शाखा में कैशियर के पद पर कार्य करना आरंभ किए। पर जिसके जेहन में गरीबों की सेवा करने की, समाज की सेवा करने की, समाज को एक नई उन्नत दिशा देने की सरिता उफान के साथ प्रवाहित हो रही हो, उसे भला नौकरी क्यों रास आए। अंततः मन पर विवेक की जीत हुई और समाज सेवा का व्रत लिए इस जननेता ने नौकरी छोड़ दी। युवा श्री मिश्र के जाहने वालों की सूची बहुत ही तेजी से बढ़ती जा रही थी। गाँव-जवार के लोगों को श्री मिश्र में एक ऐसे जमीन से जुड़े, कद्दावर, ईमानदार जननेता की छवि दिखाई देती थी कि मन ही मन वे लोग इन्हें एक नेता के रूप में स्थापित करने का मन बनाने लगे थे। आखिरकार क्षेत्रीय जनता-जनार्दन की इच्छा का सम्मान करते हुए श्री मिश्र राजनैतिक समर में कूद पड़े। वैसे भी जनता का भरपूर साथ जिसे हो उसे कौन रोक सकता है।
यह भी सत्य है कि उस समय देश की राजनीति पूरी तरह से कांग्रेस के अधीन थी। कांग्रेस का एकछत्र राज्य था भारतीय राजनीति पर। पर यह जुझारू जननायक, कांग्रेस पार्टी की इस एकछत्रता की परवाह किए किए बिना, कांग्रेस की प्रसिद्धि से निडर होकर 1980 में जनसंघ के उम्मीदवार के रूप में सलेमपुर विधान सभा क्षेत्र (देवरिया जिला) से चुनाव मैदान में कूद पड़ा। इस जननेता को मिला जनता का भरपूर अदम्य सहयोग कांग्रेस को पूरी तरह से ले डूबा और साथ ही अन्य प्रत्याशियों को भी। श्री मिश्र के सर पर जीत का सेहरा सज चुका था। दुर्गा बाबा की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस चुनाव में चुनावी मैदान में उतरे सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। उत्तर-प्रदेश में उस चुनाव में जनसंघ से सिर्फ दो ही जननेता लखनऊ पहुँच पाए थे, एक थे कल्याण सिंह और दूसरे दुर्गा प्रसाद मिश्र। इस जीत के साथ ही श्री दुर्गा प्रसाद मिश्र की गणना प्रदेश के लोकप्रिय नेताओं में होने लगी तथा साथ ही पूर्वांचल की राजनीति में श्री मिश्र एक प्रचंड सूर्य की तरह उदित हो गए थे।
भारतीय जनता भावुकता की पुजारी है। भावुकता में बहकर ये कब किसके सिर पर जीत का ताज बाँध दे, कहा नहीं जा सकता। भावुकता में यह कभी-कभी अपनों को, सच्चों को भी नजरअंदाज कर देती है और विवेक पर दिल को हावी करते हुए भेड़ियाधसान पर उतारू हो जाती है। जी हाँ 1985 के चुनाव में भी यही हुआ। स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी की मौत से उपजी सहानुभूति की नैया पर सवार कांग्रेस ने जीत की लहरों पर अपना नियंत्रण कर लिया और इस चुनाव में बरहज से चुनाव लड़ रहे श्री मिश्र को हार का सामना करना पड़ा। खैर इस हार से श्री मिश्र का मनोबल और भी मजबूत हुआ और ये तन-मन-धन से जनसेवा करते रहे। जनता के रहनुमा बने रहे। 1991 के चुनाव में बरहज विधानसभा क्षेत्र (देवरिया जिला) से भाजपा ने इन्हें अपना उम्मीदवार घोषित किया। जनता का भरपूर सहयोग तो था ही श्री मिश्र के साथ, साथ ही उस समय देश में रामलहर चल रही थी। ऐसे में श्री मिश्र का जीतना पूरी तरह तय था। उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुँचा यह जुझारू व सुविचारों का धनी जननेता, मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की मनमानी को खुली चुनौती देते हुए 54 विधायकों की परेड माननीय राज्यपाल के वहाँ करा कर अपनी शक्ति और लोकप्रियता का एहसास करा दिया। इतना ही नहीं इस ईमानदार, सत्यनिष्ठ जननेता ने विपक्ष द्वारा अपने को मुख्यमंत्री बनाए जाने के आमंत्रण को ठुकराते हुए अपनी पार्टी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि कर दी। इससे इनकी सशक्तता, जुझारूपन में और निखार आ गया और अपने सहयोगियों के साथ ही विपक्षी भी इनके कायल हो गए। बाद में इन्हें डेयरी फेडरेशन का अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया। 1999 में कल्याण सिंह सरकार में इन्हें प्रादेशिक क्वापरेटिव फेडरेशन का अध्यक्ष बनाया गया।

2001 में परिस्थितियाँ कुछ ऐसे बनी कि अपनी ही पार्टी, अपने ही लोगों ने थोड़ी इनकी उपेक्षा करनी शुरू कर दी। कुछ अपनों ने भीतरघात करके इन्हें कमजोर करना चाहा। पर यह जननेता कहाँ दबनेवाला था, यह अपनी विचारधारा का झंडा ढोना ही उचित समझा। पार्टी ने बिना समझे इस जननेता को पार्टी से 6 साल के लिए निलंबित कर दिया। पार्टी के इस रवैये से आहत श्री मित्र अपने सभी पदों से त्याग-पत्र दे दिए। पर इस जननेता को क्षेत्रीय जनता का भरपूर समर्थन मिलता रहा, जिसके चलते 2002 के विधान सभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में बरहजी जनता ने इन्हें सर-आँखों पर बिठाते हुए इनके सिर पर जीत का सेहरा बाँध दिया। इस चुनाव में जीत का अंतर देखते हुए विपक्षियों को पूरी तरह से मुँह की खानी पड़ी एवं इनकी लोकप्रियता, जुझारूपन का लोहा मानना पड़ा। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तथा श्री मुलायम सिंह मुख्यमंत्री। इस सरकार में श्री मिश्र कैबिनेट मंत्री बने पर किसी भी तरह से माननीय मुख्यमंत्री व उनकी पार्टी को अपने पर हावी नहीं होने दिया। इसके बाद 2012 में श्री मिश्र पीस पार्टी ज्वाइन किए और इस पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए। इनके अन्य पार्टियों में जाने के दौरान भी भाजपा के बड़े नेता इनके संपर्क में रहे तथा इन्हें बार-बार भाजपा में वापसी करने का अनुरोध करते रहे। अंततः पीस पार्टी से नाता तोड़ते हुए 15 जून 2013 को श्री मिश्र की भाजपा में वापसी हुई। भाजपा में इनकी वापसी से भाजपा तो मजबूत हुई ही साथ ही क्षेत्रीय जनता में भी खुशी की लहर दौड़ गई। क्षेत्रीय भाजपा कार्यकर्ताओं की खुशी का ठिकाना नहीं रहा और श्री मिश्र की वापसी पर इनका जोरदार स्वागत किया गया।
17 फरवरी 2014 को यह जुझारू, ईमानदार जननेता सदा के लिए अपनों से दूर हो गया पर अपने स्वर्णिम व्यक्तित्व, कृतित्व से राजनीतिक नेतृत्व का यह दीप्त सूर्य एक ऐसी छाप छोड़ गया जो सदा इसके होने का भान कराती रहेगी। इसके अमरत्व के गुणगान आम जनता में गाए जाते रहेंगे। इसकी कर्मठता, जुझारुपन और समाज सेवा की ललक की चर्चा चिरकाल तक घर-घर में होती रहेगी। इसके बताए हुए मार्ग का अनुसरण करते हुए युवा देश, समाज को एक नई उन्नत दिशा देने में सफल होते रहेंगे और अपने कर्म-पथ पर ईमानदारी और निडरता से अनवरत आगे बढ़ते रहेंगे।
(विशेष सहयोग- श्री ज्योति मिश्रजी राका और श्री अमरेंद्र मिश्रजी)
पं. प्रभाकर गोपालपुरिया



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