क्या जानते हैं आप
नेता काका के बारे में?
नहीं जानते?
कोई बात नहीं, मैं बताने जा रहा हूँ आपको नेता काका के बारे में। पूरा परिचित
करवाऊँगा आपको उनसे। मैं यह तो नहीं कह सकता कि उनकी कहानी सुनकर आप हँस पड़ेंगे
पर इस बात की गारंटी देता हूँ कि उनके बारे में जानकर आप मुस्काए बिना नहीं रह
सकते और इतना ही नहीं आपको जब-जब नेता काका याद आएंगे (याद आएंगे नहीं, आएंगे ही!) आप अपनी मंद-मंद मुस्कान को रोक नहीं पाएंगे।
अगर गाँव-जवार में लंठों के लिए कोई पदवी, उपाधि होती, जैसे कि ‘लंठाधिराज’, ‘श्री श्री महा लंठाधिराज’ आदि तो हर साल इसे जरूर नेता काका ही जीतते और
जीतते क्यों नहीं, हर साल वे जो अपनी नई-नई लंठई द्वारा सुर्खियों में बने रहते
हुए लोगों के चेहरों पर गुस्सा मिश्रित हँसी का संचार कर जाते हैं।
गोल-मटोल शरीर,
मध्यम कद-काठी, गौर वर्ण, चेहरे पर सदा तैरती हल्की सी गंभीर मुस्कान के धनी नेता
काका के घुंघराले छोटे-छोटे पर पूरे बाल भी शायद बचपन से ही श्वेत वर्ण के हैं और
आज भी अपनी चमक को बरकरार रखे हुए हैं। किसी गंभीर बात को भी हँसी में बदल देने
वाले नेता काका सामने वालों को हँसने पर तो मजबूर कर देते हैं पर उनके चेहरे की
गंभीरता पर उस हास्य का कोई असर नहीं दिखता, हाँ कभी-कभी मंद मुस्कान उनकी श्वेत
बतीसी की हल्की झलक, बदली में लुका-छिपी का खेल खेलते चंद्र-सूर्य की भाँति प्रकट
कर जाती है।
नेता काका का असली
नाम क्या है, मुझे क्या, शायद अधिकांश गाँववालों को भी पता नहीं। शायद इसका कारण
यह है कि नेता काका का यही नाम (नेता) सुनने से गंभीर चेहरे पर भी एक मुस्कान जो
तैर जाती है, रोता हुआ बच्चा भी ‘नेता
काका’ शब्द
का उच्चारण कहीं से भी कान में पड़ते ही हँस उठता है इसलिए कोई उनका असली नाम
जानने की कोशिश नहीं करता। और साथ ही जबसे मैंने होश संभाला है, पाया है कि
गाँव-जवार, हित-नात भी सभी उन्हें नेता-नेता ही कहकर बुलाते आ रहे हैं। कुछ लोग
बताते हैं कि एक बार विधायकी के चुनाव में नेता काका खमेसर शुकुल का प्रचार कर रहे
थे, उनकी गाड़ियों में घूम-घूमकर, माइक में चिल्ला-चिल्लाकर खमेसर शुकुल को ओट
देने के लिए जनता से अनुरोध करते। पर एक बार खमेसर शुकुल ने खुद ही अपनी नंगी
आँखों से उन्हें विपक्षी उम्मीदवार मटेसर पाणे की गाड़ी पर घूमते हुए और उनका
जय-जयकारा लगाते हुए देख लिया था। फिर क्या था, खमेसर शुकुल नेता काका को बुलवाए
और साक्षात दंडवत करते हुए धरती पर लोट गए तथा हाथ जोड़कर बोले कि आप ही वास्तव
में नेता हो, हम लोग आपके आगे फेल हैं, जीरो हैं। कहा जाता है कि तभी से नेता काका
‘नेता-नेता’ कहे जाने लगे। इतना ही नहीं, वैसे भी नेता काका
को बराबर टिनोपलहिया कुर्ता-पाजामा-गमछा में ही देखा जाता है, शायद इस कारण भी वे
नेता कहलाते हैं।
![]() |
मेरे गाँव के दो और लंठाधिराज |
आइए, अब आप लोगों को
नेता काका के लड़कपन में लिए चलता हूँ। नेता काका जब प्राइमरी में पढ़ते थे तो
स्कूल से बहुत ही बंक मारते थे। गाँव से स्कूल जाते समय किसी बगीचे आदि में रूक
जाते और अपने कुछ सहपाठियों के साथ गँवई खेल कबड्डी, ओल्हा-पाती आदि खेलने में
मस्त हो जाते। एक बार की बात है कि नेता काका स्कूल जाने के लिए कुछ दोस्तों के
साथ निकले पर एक बगीचे में लगे ओल्हा-पाती खेलने। उसी दौरान उनके गाँव का एक
व्यक्ति उसी रास्ते से होकर बाजार जा रहा था। उसने इन लोगों को उस बगीचे में खेलते
देखा। उसे लगा कि शायद अभी स्कूल खुलने में समय होगा इस लिए गाँव के ये बच्चे यहाँ
खेल रहे हैं। पर यह क्या, 2-3 घंटे बाद जब वह बाजार करके उसी रास्ते से घर लौटा तो
क्या देखता है कि बच्चे तो स्कूल न जाकर अभी भी खेलने में मशगूल हैं। वह तेज
साइकिल दौड़ता हुआ अपने घर न जाकर पहले नेता काका के घर गया और उनके बड़े भाई को
सारी बात बता दी। नेता काका के भाई, बहुत गुस्सैल, वे लाठी उठाए और सीधे उस बगीचे
में पहुँचे। नेता काका को देखते ही वे लाठी तान दिए, अभी वे लाठी से प्रहार करें
इसके पहले ही नेता काका गंभीर मुद्रा बनाकर बोल पड़े, “भइया! शांत हो जाइए। हम लोग स्कूल गए थे पर स्कूल में
छुट्टी हो गई, क्योंकि प्रिंसपल साहब की माँ मर गई हैं।” नेता काका की यह बात सुनकर उनके बड़े भाई थोड़े
शांत तो हुए पर उन्हें नेता काका की बातों पर विश्वास नहीं हुआ, वे दूसरे लड़कों
के तरफ घुमे और सच्चाई जाननी चाही। मार का डर किसे नहीं डराता। बच्चों ने भी नेता
काका के हाँ में हाँ मिला दी। पर नेता काका के बड़े भाई भी कहाँ चुप रहने वाले थे।
वे दूसरे दिन सुबह-सुबह नेता काका को लेकर उनके स्कूल पर पहुँच गए। स्कूल पर
पहुँचकर वे सीधे प्रिंसपल से मिले और एक दिन पहले (बीते कल) वाली घटना सुना दी।
प्रिंसपल तो पूरी तरह से गुस्से में आ गया, क्योंकि बच्चों के छुट्टी (बंक) मारने
से उसे उतना गुस्सा नहीं आया, जितना इस बहाने से की बच्चों ने उसकी ही माँ को मार
दिया। अब क्या था, प्रिंसपल ने डंडा उठाया और नेताकाका एवं उनके साथ बंक मारने
वाले सहपाठियों को खूब धोया। पर संयोग भी अजीब चीज है। प्रिंसपल साहब की माँ 5-6
दिनों से बीमार चल रही थीं और जिस दिन नेता काका की पिटाई हुई उसी दिन रात को वे
स्वर्ग सिधार गईं। अपनी माँ का क्रिया-कर्म करके कुछ हप्तों के बाद जब प्रिंसपल
साहब स्कूल आए तो सबसे पहले नेता काका को बुलाए और हाथ जोड़कर बोले की नेता तुम
जितना चाहो बंक मारो पर किसी के माँ-बाप आदि को मत मारो।
आइए, अब मेरे हिसाब
से नेता काका का सबसे दमदार खिस्सा सुनिए। एक बार की बात है कि नेता काका गाँव की
कुछ बुजुर्ग महिलाओं (अपनी माँ, काकी आदि) को लेकर इलाहाबाद नहान (धार्मिक दृष्टि
से किसी पर्व पर किया जाने वाला स्नान आदि जैसे कुंभ आदि) कराने निकले। वे देवरिया
आकर सभी महिलाओं को बरहजिया ट्रेन में बिठाकर बरहज (एक धार्मिक शहर) पहुँच गए। फिर
नदी किनारे पहुँचकर उन महिलाओं से बोले कि इलाहाबाद संगम आ गया, आप लोग अब बिना
देर किए नहान कर लीजिए। उसमें से अधिकांश महिलाएँ बहुत बार इलाहाबाद गई थीं,
उन्हें थोड़ा अजीब लग रहा था कि जिस इलाहाबाद पहुँचने में दसेक (10-12) घंटे लगते
हैं, उस इलाहाबाद में हम लोग 2-3 घंटे में ही कैसे पहुँच गए? साथ ही उन्हें इलाहाबाद जैसा कुछ भी नजर नहीं आ
रहा था। एक महिला बोल पड़ी की ए नेता, बड़का पुलवा तो नहीं दिख रहा है और ना ही
भीड़-भाड़ ही है साथ ही इतना जल्दी हम लोग कैसे पहुँच गए? उस बुजुर्ग महिला की बात सुनते ही नेता काका
गंभीर हो गए और बोल पड़े, “काकी! आपको पता नहीं है, बहुत बाढ़ आ गई थी, इससे वह
पुल तथा साथ ही कितने साधु-संन्यासियों के टेंट आदि गंगाजी में दह गए। और इतना ही
नहीं इस बार यह नहान कही जगह लगा है और साथ ही भिनसहरे (अति सुबह) का ही नहान था
इसलिए बहुत सारे लोग नहा कर जा चुके हैं। वैसे भी संगम पर नागा साधुओं का स्नान
है, इसलिए मैं आप लोगों को लेकर उधर नहीं जा सकता, इधर ही नहाना पड़ेगा।” इसके बाद थोड़ा गुस्सा होकर बोले, “आप लोगों को तो देश दुनिया की खबर रखनी नहीं है।
हम लोग जिस ट्रेन से आए वह विशेषकर इस नहान के लिए ही चलाई गई है और उसकी स्पीड
अन्य ट्रेनों की तुलना में चौगुना है, इसलिए हम लोग फटाफट पहुँच गए।” इसके बाद थोड़ा धीरा होकर कहने लगे कि पिछली
बातों को भूल जाइए और फटाफट नहा लीजिए नहीं तो नहान का समय निकल जाएगा और हम लोगों
का आना व्यर्थ जाएगा। फिर क्या था, सभी बुजुर्ग महिलाएँ वहीं स्नान, पूजा-पाठ कीं
और फिर घर आ गईं। जय हिंद।
पं.
प्रभाकर गोपालपुरिया
9892448922
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (22-06-2016) को ""वर्तमान परिपेक्ष्य में योग की आवश्यकता" (चर्चा अंक-2381) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बाह..!
जय हो नेता काका की
एक टिप्पणी भेजें